Jaipur: कुछ लोगों को लगता है कि वो इन दिनों कुछ ज्यादा ही भूलने लगे हैं. उन्हें लगता है कि पहले ऐसा नहीं होता था. शायद उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या बढ़ी होगी. यह कुछ हद तक ठीक भी है, लेकिन केवल यही वजह नहीं कि लोग भुलक्कड़ होने लगे हैं. आइए जानते हैं कि एक्सपर्ट इस बारे में क्या कहते हैं…
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रोजाना की जिंदगी में कई बार हम ये सोचते हैं कि क्या स्मृति में कमी सामान्य है. या फिर ये संज्ञानात्मक गिरावट का संकेत, या कहीं डिमेंशिया अथवा मनोभ्रंश की शुरुआत तो नहीं. हमारी पहली अवधारणा यह होती है कि यह हमारे दिमाग में कमी के कारण है. और यह सच भी है कि हमारे शरीर के बाकी हिस्सों की तरह, हमारे दिमाग की कोशिकाएं भी एज बढ़ने के साथ-साथ सिकुड़ती चली जाती हैं. वह पहले की अपेक्षा अन्य न्यूरॉन्स के साथ कम संबंध बना पाती हैं. और अन्य न्यूरॉन्स को संदेश भेजने के लिए जरूरी रसायनों को कम स्टोर कर पाती हैं.
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हालांकि सभी मेमोरी लैप्स न्यूरॉन्स में उम्र से संबंधित बदलावों के कारण नहीं होते हैं. कई बार प्रभावित करने वाले कारक बहुत ही छोटे होते हैं. जिनमें थका हुआ, चिंतित या विचलित होना भी शामिल है.
कभी- कभी कुछ भूल जाना सामान्य बात है
हमारी याददाश्त प्रणाली इस तरह से बनी होती है कि कुछ हद तक भूल जाना सामान्य है. यह कोई खामी नहीं है, बल्कि एक विशेषता है. यादों को बनाए रखना न सिर्फ हमारे चयापचय को प्रभावित करता है, बल्कि बहुत ज्यादा गैर जरूरी जानकारी हमारी कुछ खास यादों को याद करने को धीमा कर सकती है. दुर्भाग्य से, यह तय करना हर दम हमारे ऊपर नहीं होता कि क्या जरूरी है. और क्या याद रखा जाना चाहिए. दिमाग हमारे लिए ऐसा करता है. या सामान्यतौर पर, हमारा दिमाग सोशल जानकारी को तरजीह देता है. अमूर्त जानकारी ( जैसे-संख्या ) को आसानी से छोड़ भी देता है.
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स्मृति लोप एक तरह से समस्या बन जाती है, जब यह सामान्य जीवन को प्रभावित करने लगे. यदि आपको दाएं या बाएं मुड़ जाना याद नहीं है. तो ये कोई बड़ी परेशानी नहीं. हालांकि ये भूलना कि आप गाड़ी क्यों चला रहे हैं. आप कहां और क्यों जा रहे हैं, या यहां तक कि ड्राइव कैसे करें. यह सब सामान्य नहीं है. यह इसका संकेत हो सकते हैं कि शायद कुछ ठीक नहीं. और इसकी आगे जांच होनी चाहिए. उम्र बढ़ने से जुड़ी याददाश्त हानि और स्मृति हानि के बीच के अंतर को हल्के संज्ञानात्मक नुकसान के रूप में आंका गया है. नुकसान की डिग्री स्थिर हो सकती है. सुधर या खराब हो सकती है.
अगर देखा जाए तो यह डिमेंशिया जैसे फ्यूचर के न्यूरोजेनरेटिव रोग के बढ़ते जोखिम को दर्शाता है. हर साल हल्के संज्ञानात्मक हानि वाले करी 10-15 प्रतिशत लोग डिमेंशिया विकसित करते हैं. कम संज्ञानात्मक नुकसान वाले लोगों के लिए सामान्य गतिविधियों को करने की क्षमता वक्त के साथ धीरे-धीरे अधिक महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होती है.